ओम के नियम की परिभाषा
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
ओम का नियम
ओम के नियम का प्रतिपादन- ओम के नियम का प्रतिपादन 1827 भौतिक विज्ञानी जॉर्ज साइमन ओम ने किया था यह नियम किसी परिपथ में प्रवाहित विद्युत धारा, विभवांतर तथा प्रतिरोध के बीच संबंध स्थापित करता है।
ओम के नियम की परिभाषा - यदि किसी पदार्थ की भौतिक अवस्थाएं (जैसे ताप, दाब आदि) नियत रहे तो प्रतिरोधक के सिरों के बीच उत्पन्न विभवांतर उसमें प्रवाहित धारा के समानुपाती होता है।"
अर्थात्
V ∝ I
या
V = RI
या
R= I/V
जहां,
V = विभवांतर, इसकी इकाई वोल्ट है।
I = धारा, इसकी इकाई एंपियर है।
R = प्रतिरोध, की इकाई ओम है।
ओम के नियम की सीमाएं (Limitations Ohm’s Law In Hindi)-
जब कोई चालक युक्ति ओम के नियम का परीपालन करती है तब उसका प्रतिरोध R आरोपित विभवान्तर पर निर्भर नहीं करता है जिससे V व I के मध्य आलेख एक सरल रेखा होती है जो मुख्य बिन्दु से गुजरती है। जो पदार्थ ओम के नियम का पालन करते हैं, उन्हें ओमीय चालक कहते हैं। चाँदी, ताँबा, पारा, नाइक्रोम, सल्फर, माइका, घुलनशील इलेक्ट्रोड वाले विद्युत अपघट्य आदि ओमीय चालक है। ओम का नियम सभी चालकों पर लागू नहीं होता जैसे निर्वात नलिका, अर्धचालक डायोड, विद्युत अपघटनी द्रव, ट्रांजिस्टर इत्यादि। ऐसे चालकों को अन्-ओमीय चालक कहा जाता है। प्रतिरोध निम्न दो प्रकार के होते हैं।
(i) ओमीय प्रतिरोध-
वे प्रतिरोध जो ओम के नियम का पालन करते है अर्थात् जिनके लिए Y का मान नियत रहता है, ओमीय प्रतिरोध कहलाते हैं। इनके लिए V-I ग्राफ एक सरल धातु रेखा होती है। सभी धात्वीय चालक कम विभवान्तर के लिए ओमीय होते हैं।
(ii) अन-ओमीय प्रतिरोध - वे प्रतिरोध जो ओम के नियम का पालन नहीं करते हैं अर्थात् जिनके लिए V-I ग्राफ सरल रेखा न होकर वक्र रेखा होती है, अन-ओमीय प्रतिरोध कहलाते हैं। यहाँ कुछ स्थितियाँ दी जा रही है जिनमे पालन नहीं होता हैं।
(a) विभवान्तर के साथ धारा में परिवर्तन अरैखिक हो - धात्वीय चालक केवल तभी ओमिय रहते है जब तक उनमें कम धारा बहती हैं। अर्थात जब तक उनके सिरों पर कम विभवान्तर लगाया जाता है। अधिक विभवान्तर लगाने पर उनका व्यवहार ओमीय नहीं रहता क्योंकि अधिक धारा बहने पर चालक गर्म होते है और गर्म होने पर प्रतिरोध बढ़ जाता है। कहने का मतलब है की उच्च धाराओं के लिए धात्विक चालक भी ओमीय नहीं रहते है।
(b) विभवान्तर के साथ धारा में परिवर्तन विभवान्तर के चिन्ह पर निर्भर करता है - इस स्थिति में विभवान्तर V के लिए धारा का मान I होता है तो V का मान स्थिर रख कर इसकी दिशा परिवर्तित करने पर विपरीत दिशा में I के समान मान की धारा प्रवाहित नही होती है।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
टिप्पणियाँ