प्राचीन भारतीय भौतिकी (Ancient Indian Physics)
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प्राचीन भारतीय भौतिकी (Ancient Indian Physics)
प्राचीन भारतीय भौतिकी का इतिहास बहुत ही रोचक में है जो आज भी आधुनिक आविष्कारों से मेल खाता है। प्राचीन भारत में भौतिकी को धर्म से जोड़कर देखा जाता था। प्रारम्भ में भारतीय दर्शन शास्त्रीयों का मत था कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति चार तत्वों से हुई है।
ये चार तत्व हैं : भू (या पृथ्वी), सागर ( या पानी), वायु (या समीर) तथा अग्नि । जैन मतानुसार इसमें एक और तत्व आकाश (या ईथर) जोड़ा गया। इस प्रकार ये पाँच तत्व भू, सागर, वायु, अग्नि तथा आकाश ही ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम माने गये। इनमें भू को सूँघनें (smell) का, सागर को स्वाद ( taste) का, वायु को स्पर्श (feel) का, अग्नि को दृष्टि (vision) का तथा आकाश को ध्वनि (sound) का माध्यम माना गया।
बौद्ध धर्मियों तथा आजीविकाओं (Ajivikas) ने आकाश को तत्व न मानकर, चेतना (life), सुख (joy) तथा दु:ख (sorrow) को तत्व माना तथा इस प्रकार कुल सात तत्व माने गये। प्रारम्भ में भारतीय वैज्ञानिकों का मत था कि ईथर को छोड़कर अन्य सभी तत्व परमाण्विक होते हैं। इस मत की सर्वप्रथम वकालत बुद्ध के अनुयायी पाकुधा कत्यायान (Pakudha Katyayana) ने की।
जैन धर्म के अनुसार सभी परमाणु ठीक एक जैसे (identical) होते हैं। बाद में यह माना गया कि परमाणु उतने ही प्रकार के होते हैं जितने प्रकार के तत्व होते हैं। परमाणुओं को अनन्त (eternal) तथा अति-सूक्ष्मतम कण माना गया जिन्हें न तो नेत्रों से देखा जा सकता है तथा न ही उनका कोई परिमाण (magnitude) होता है। एक परमाणु में कोई गुण नहीं होता है, लेकिन ये परमाणु मिलकर अत्यन्त प्रबल (potential ) हो जाते हैं।
यद्यपि प्राचीन भारत का परमाण्विक सिद्धान्त केवल अंतर्ज्ञान (intuition) तथा तर्क (logic) पर आधारित था, लेकिन आश्चर्य रूप से यह आंशिक तौर पर आधुनिक परमाणु सिद्धान्त से मेल खाता है। प्राचीन भारत में ब्रह्म गुप्त नामक वैज्ञानिक ने पृथ्वी के आकर्षण बल को माना था, लेकिन इसके लिए कोई गुरुत्वाकर्षण का नियम प्रतिपादित नहीं किया था। उनके अनुसार सभी भारी वस्तुएँ पृथ्वी की ओर नीचे, प्रकृति के नियमानुसार गिरती हैं, क्योंकि पृथ्वी की यह प्रकृति है कि वह वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करे। यह ठीक उसी प्रकार है जैसे कि पानी की प्रकृति बहना है। यह भी देखा गया था कि ठोस व द्रव गर्म करने पर फैलते हैं, लेकिन इसका कोई प्रयोगात्मक अध्ययन नहीं किया गया।
भारतीय प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में भौतिकी सम्बन्धी निम्न तथ्यों का उल्लेख मिलता है:
(i) अग्नि (ऊर्जा) अक्षय और अमर है। यह कथन आधुनिक ऊर्जा के संरक्षण नियम के अनुकूल है जिसके अनुसार ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है।
(ii) दो पत्थरों को परस्पर रगड़ने से अग्नि उत्पन्न होती है। यह कथन घर्षण से ऊष्मा की उत्पत्ति बताता है।
(iii) सूर्य में सात प्रकार की किरणें (राशियाँ) होती हैं। यह कथन आधुनिक सिद्धान्त के अनुकूल है जिसके अनुसार श्वेत प्रकाश मुख्यत: सात रंगों (VIBGYOR) से मिलकर बना है।
(iv) प्रकाश की गति आधे निमेष में दो हजार दो सौ दो योजन है। चूँकि आधे निमेष का अर्थ 0.1065 सेकण्ड तथा एक योजन का अर्थ 9 मील है। अतः प्रकाश कि चाल = 9x 2202 मील/0.1065 सेकण्ड = 186084.5मील/सेकेंड प्राप्त होती है जो लगभग 2.9946579 x 10की घात 8 मीटर/सेकण्ड के बराबर है। स्पष्टत: यह आधुनिक मान c %= 2.99792458 x10की घात 8 मीटर/सेकण्ड से लगभग मेल खाता है।
(v) प्रत्येक पदार्थ सदैव अन्य पदार्थ को आकर्षित करता है । यह कथन न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम के अनुरूप है।
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